डेंगू बुखार: कारण, लक्षण, निदान, उपचार और बचाव

डेंगू बुखार: कारण, लक्षण, निदान, उपचार और बचाव

डेंगू बुखार एक गंभीर वायरल बीमारी है जो मच्छरों के माध्यम से फैलती है। यह बीमारी मादा एडीज मच्छर के काटने से फैलती है, जो आमतौर पर दिन के समय काटता है। भारत में हर साल 1000 से ज्यादा लोग इस बीमारी से प्रभावित होते हैं, डेंगू बुखार दुनिया भर के कई देशों में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या है।

डेंगू बुखार क्या है? (Dengue Fever kya hai)

डेंगू एक वायरल संक्रमण है जो डेंगू वायरस के चार प्रकारों (DENV-1, DENV-2, DENV-3, और DENV-4) के कारण होता है। एक बार व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित हो जाता है, तो उसके शरीर में डेंगू के लक्षण (dengue fever ke lakshan) प्रकट होते हैं। डेंगू का प्रसार मुख्य रूप से मच्छरों द्वारा होता है, खासकर एडीज मच्छर, जो संक्रमित व्यक्ति से वायरस को दूसरों में फैलाता है।

डेंगू बुखार के कारण (Dengue Fever Causes)

डेंगू बुखार का मुख्य कारण (Dengue Fever Causes) डेंगू वायरस है। नीचे इसके कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं:

  • मच्छरों का काटना: डेंगू बुखार केवल संक्रमित मादा एडीज मच्छर के काटने से होता है।
  • प्रदूषित पानी का जमाव: घर या आसपास के क्षेत्रों में पानी का ठहराव एडीज मच्छरों के पनपने का प्रमुख कारण होता है।
  • कमजोर इम्यून सिस्टम: जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन्हें डेंगू का संक्रमण जल्दी होता है।
  • वायरस के चारों प्रकार से संक्रमित होना: यदि व्यक्ति पहले एक प्रकार के डेंगू वायरस से संक्रमित हो चुका है, तो दूसरे प्रकार के वायरस से भी वह संक्रमित हो सकता है, जिससे गंभीर बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है।

डेंगू बुखार के लक्षण (Dengue fever ke lakshan)

डेंगू के लक्षण (dengue fever ke lakshan) वायरस के संपर्क में आने के 4-10 दिन बाद दिखाई देते हैं। यह लक्षण हल्के से लेकर गंभीर हो सकते हैं।:

  1. अचानक बहुत तेज बुखार आना, जो 2 से 7 दिन तक रहता है।
  2. तेज सिरदर्द
  3. आँखों में दर्द महसूस होना।
  4. मांसपेशियों और जोड़ों में तेज दर्द और जकड़न महसूस होना।
  5. शरीर में अत्यधिक कमजोरी और थकान महसूस होना।
  6. जी मिचलाना और उल्टी आना।
  7. शरीर पर लाल रंग के चकत्ते आना जो 3-4 दिन बाद दिखाई देतें हैं।
  8. गंभीर मामलों में नाक, मसूड़ों या अन्य अंगों से रक्तस्राव हो सकता है।

डेंगू बुखार का निदान (Dengue Fever Diagnosis)

डेंगू बुखार का निदान करने के लिए डॉक्टर मरीज़ के लक्षणों (dengue fever ke symptoms) का ध्यानपूर्वक देखते हैं और उसके बाद कुछ परीक्षण करते हैं। कुछ प्रमुख निदान प्रक्रिया निम्नलिखित हैं:

  1. रक्त परीक्षण: डेंगू वायरस की उपस्थिति की पुष्टि के लिए ब्लड की जाँच की जाती है।
  2. एलिसा टेस्ट (ELISA): यह एक खास प्रकार का ब्लड टेस्ट है जो डेंगू वायरस के एंटीबॉडी की पहचान करता है।
  3. एनएस1 एंटीजन टेस्ट (NS1 Antigen Test): यह परीक्षण डेंगू के शुरुआती चरण में किया जाता है ताकि वायरस की उपस्थिति की पुष्टि हो सके।
  4. पीसीआर टेस्ट (PCR Test): यह वायरस के जीनोम का विश्लेषण करने वाला परीक्षण है जो डेंगू की पुष्टि करता है।

डेंगू बुखार का उपचार (Dengue Fever Treatment)

डेंगू बुखार का कोई विशेष एंटीवायरल इलाज नहीं है। डेंगू बुखार का उपचार (Dengue Fever Treatment) लक्षणों को कम करने और मरीज़ की स्थिति में सुधार लाने पर केंद्रित होता है। उपचार के प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं:

  1. आराम: मरीज़ को पूरी तरह आराम करना चाहिए ताकि शरीर को ठीक होने का समय मिल सके।
  2. तरल पदार्थों का सेवन: डेंगू के दौरान शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसलिए खूब पानी पीना और इलेक्ट्रोलाइट्स लेना जरूरी है।
  3. दर्द निवारक दवाएं: बुखार और दर्द को कम करने के लिए पैरासिटामोल दी जाती है। एस्पिरिन और इबुप्रोफेन जैसी दवाओं से बचना चाहिए क्योंकि यह रक्तस्राव का खतरा बढ़ा सकती हैं।
  4. हॉस्पिटल में भर्ती: गंभीर मामलों में मरीज़ को हॉस्पिटल में भर्ती किया जा सकता है जहाँ उसे तरल पदार्थ चढ़ाए जाते हैं और ब्लड प्लेटलेट्स की जाँच की जाती है।

डेंगू बुखार के जोखिम (Dengue Fever ke Risk Factors)

डेंगू बुखार का जोखिम (Dengue Fever ke Risk Factors) कुछ स्थितियों में अधिक बढ़ जाता है। इसके प्रमुख जोखिम कारक निम्नलिखित हैं:

  1. जो लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहाँ डेंगू का प्रकोप अधिक होता है, उन्हें संक्रमण का खतरा अधिक होता है।
  2. जिन व्यक्तियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, उन्हें डेंगू का खतरा अधिक होता है।
  3. यदि व्यक्ति पहले डेंगू वायरस से संक्रमित हो चुका है, तो पुनः संक्रमण का खतरा अधिक हो जाता है।
  4. घर या आसपास मच्छरों के पनपने के स्थानों की मौजूदगी।
  5. गर्भवती महिलाओं में डेंगू का संक्रमण जटिलताएं पैदा कर सकता है।

डेंगू बुखार का बचाव (Prevention of Dengue Fever)

डेंगू बुखार से बचने के लिए कुछ प्रमुख उपाय किए जा सकते हैं। ये उपाय मच्छरों के काटने से बचाव और उनके प्रजनन को रोकने पर केंद्रित होते हैं। डेंगू से बचाव के कुछ प्रमुख  (Prevention of Dengue Fever) तरीके निम्नलिखित हैं:

  1. मच्छरदानी का उपयोग: सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें।
  2. मच्छरों को रोकनेवाली क्रीम का इस्तेमाल: बाहर जाते समय मच्छरों को रोकनेवाली क्रीम का इस्तेमाल करें।
  3. पानी का ठहराव रोकें: घर और आसपास पानी को ठहरने ना दें, ताकि मच्छर ना पनप सकें।
  4. मच्छरों के काटने से बचने के लिए शरीर को पूरी से ढकने वाले कपड़े पहनें।

गर्भावस्था में डेंगू बुखार (Dengue Fever in Pregnancy)

गर्भावस्था के दौरान डेंगू (Dengue Fever in Pregnancy) का संक्रमण विशेष रूप से खतरनाक हो सकता है। यह गर्भवती महिला और उसके शिशु दोनों के लिए जटिलताएं पैदा कर सकता है। गर्भवती महिलाओं में डेंगू के जोखिम को कम करने के लिए उन्हें मच्छरों के काटने से बचाव के उपायों को गंभीरता से लेना चाहिए और अगर लक्षण दिखाई दें तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।

डेंगू की पहचान कैसे की जाती है (Dengue Fever Diagnosis)

डॉक्टर डेंगू संक्रमण का निदान (Dengue Fever Diagnosis) करने के लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का उपयोग कर सकते हैं। डेंगू संक्रमण की पहचान के लिए डॉक्टर कई परीक्षण कर सकते हैं। डेंगू बुखार का पता लगाने के लिए प्रयोग किए जाने वाले परीक्षण प्रक्रियाएं कुछ इस प्रकार हैं:

डेंगू NS1 एंटीजन टेस्ट (dengue NS1 antigen test): यह टेस्ट डेंगू वायरस के NS1 की जाँच करता है। डेंगू के लक्षणों (dengue fever infection) के पहले सप्ताह के दौरान यह परीक्षण बहुत उपयोगी है।

डेंगू के लिए एंटीबॉडी टेस्ट (dengue antibody test):

  • आईजीएम एंटीबॉडी टेस्ट (IgM Antibody Test): यह जाँच कुछ एंटीबॉडीज (संक्रमण से लड़ने वाले अणु) की जाँच करती है जो शरीर डेंगू बुखार (dengue fever) होने पर बनाता है। आमतौर पर लक्षणों के तीन से पांच दिन बाद पॉजिटिव होता है, और यह कुछ हफ्तों तक ऐसा रह सकता है।
  • आईजीजी एंटीबॉडी टेस्ट (IgG antibody test): यह टेस्ट अलग-अलग एंटीबॉडी की जाँच करता है जो बाद में बीमारी में उभरता है और कई महीनों से वर्षों तक बने रह सकते हैं।
  • RT-PCR परीक्षण (RT-PCR test): आरटी-पीसीआर परीक्षण का अर्थ होता है रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन। RT-PCR डेंगू वायरस की आनुवांशिक सामग्री (RNA) की जाँच के लिए एक टेस्ट है। यह परीक्षण बीमारी के शुरुआती दौर में किया जाता है, जब यह सबसे प्रभावी होता है।

गंभीर डेंगू बुखार के लक्षणों के मामले में चिकित्सक अन्य अंगों में डेंगू संक्रमण (dengue fever ke infection) के प्रसार को जानने के लिए अन्य ब्लड टेस्ट और रेडियोलॉजी इमेजिंग टेस्ट का सुझाव दे सकते हैं।

  • लिवर फंक्शन टेस्ट (LFT): LFT में सीरम बिलीरुबिन, उच्च ट्रांसएमिनेस, और सीरम एल्ब्यूमिन के स्तर की जाँच की जाती है। यह जाँच यकृत विफलता के लक्षणों को पहचानने में मदद करती है, जो डेंगू संक्रमण के कारण (dengue fever ke causes) हो सकती है।

  • रीनल फंक्शन टेस्ट (RFT): RFT में सीरम क्रिएटिनिन स्तर की जाँच की जाती है। यह जाँच विभिन्न गुर्दे की बीमारियों के कारण होने वाली समस्याओं को पहचानने में मदद करती है, जैसे कि नेफ्रोटिक सिंड्रोम, ट्यूबलर नेक्रोसिस, एक्यूट रीनल फेल्योर, हाइपोटेंशन, हेमोलिटिक यूरेमिक सिंड्रोम, हेमोलिसिस, रबडोमायोलिसिस, प्रोटीनुरिया, या ग्लोमेरुलोपैथी।

  • चेस्ट एक्स-रे (Chest X-ray): यह टेस्ट प्ल्यूरल इफ्यूजन (फ़्लूड का असामान्य रूप से इकट्ठा होना) और पेरिकार्डियल इफ्यूजन (दिल के चारों ओर तरल पदार्थ का इकट्ठा होना) की जाँच करने के लिए किया जाता है।

  • इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ECG): डेंगू संक्रमण से हृदय की गतिविधि की जाँच करने के लिए किया जाता है। कई मरीज़ों में डेंगू संक्रमण के कारण पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट के असामान्यताओं के कारण ई.सी.जी. पर विचित्रताएं देखी जाती हैं, जैसे साइनस ब्रैडीरिथिमिया, वेंट्रिकुलर ऐसिस्टोल, साइनस टेकीअरिथमिया, सुप्रावेंट्रिकुलर टैचीकार्डिया (एसवीटी) और स्टी-और टी-वेव परिवर्तन।
  • अल्ट्रासाउंड एब्डोमेन (USG): मुख्य रूप से डेंगू बुखार के संक्रमण (dengue fever ke infection) के कारण होने वाली सेरोसाइटिस, पेट में तरल पदार्थ, पित्ताशय की थैली में सूजन, पेरिकोलेसिस्टिक द्रव, जलोदर (आपके पेट के भीतर रिक्त स्थान में द्रव का निर्माण) जैसी स्थितियों की जाँच करने के लिए किया जाता है।

  • 2डी इकोकार्डियोग्राफी (2D Echo): 2D Echo हृदय की मांसपेशियों की जाँच के लिए एक प्रकार का परीक्षण है। गंभीर डेंगू बुखार हृदय को संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से प्रभावित करता है। डेंगू वायरस के संक्रमण से होने वाली कार्डियक जटिलताओं में स्व-सीमित अतालता से लेकर गंभीर मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन तक भिन्न होता है, जिससे हाइपोटेंशन, पल्मोनरी एडिमा और कार्डियोजेनिक शॉक होता है।

  • डी-डाइमर (D-dimer): ब्लड में डी-डाइमर स्तर की जाँच की जाती है। डी-डाइमर एक प्रोटीन का टुकड़ा होता है जो शरीर में ब्लड के थक्कों के घुलने पर उत्पन्न होता है। डेंगू संक्रमण से रक्त में डी-डाइमर का स्तर बढ़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप शरीर में दर्द, सीने में तेज दर्द, तेज बुखार, सांस लेने में परेशानी और हाथ या पैर की त्वचा के रंग में बदलाव हो सकता है।

  • फाइब्रिनोजेन परीक्षण (fibrinogen test): फाइब्रिनोजेन के स्तर की जाँच करने के लिए यह परीक्षण किया जाता है। फाइब्रिनोजेन एक रक्त प्रोटीन होता है जो लीवर में उत्पन्न होता है और ब्लड के थक्कों को जमने में मदद करता है। फाइब्रिनोजेन की कमी के कारण ब्लड को थक्का जमना मुश्किल हो जाता है। जटिल डेंगू रक्तस्रावी बुखार के मरीज़ों में अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है, इसलिए डॉक्टर आपके फाइब्रिनोजेन स्तरों की जाँच के लिए इस परीक्षण का उपयोग करते हैं।

  • फाइब्रिन डिग्रेडेशन उत्पाद ब्लड टेस्ट  (FDP): यह एक रक्त परीक्षण है जिसका उपयोग एफडीपी स्तरों की जाँच के लिए किया जाता है। एफडीपी एक पदार्थ होते हैं जो ब्लड में थक्कों के घुलने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। जटिल डेंगू रक्तस्रावी बुखार के कारण एफडीपी स्तरों में वृद्धि हो सकती है, जो प्राथमिक या द्वितीयक फाइब्रिनोलिसिस (थक्का-घुलने की गतिविधि) के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।

अगर आपको डेंगू बुखार का संदेह हो या आपके लक्षण (dengue fever ke symptoms)डेंगू से मेल खाते हों, तो डॉक्टर से परामर्श लेना महत्वपूर्ण है। वो आपको सही उपचार दे सकते हैं और आपकी स्थिति के लिए सही सलाह प्रदान कर सकते हैं।


निष्कर्ष (Conclusion):

डेंगू एक गंभीर लेकिन रोके जा सकने वाली बीमारी है। शुरुआती लक्षणों को पहचानकर समय पर डॉक्टर से संपर्क करना और सही देखभाल करना बेहद जरूरी है। अगर आपको या आपके परिवार में किसी को डेंगू के लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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